बातचीत के दौरान सांस के साथ निकलने वाली छोटी बूंदें (रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट) हवा में आठ मिनट और इससे ज्यादा समय तक भी रह सकती है। अमेरिका के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज एंड किडनी डिसीज’ और पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मिलकर यह अध्ययन किया है। इस अध्ययन को ‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित किया गया है।
बोलते समय हर सेकेंड हजारों छोटी बूंदें मुंह से निकलती हैं,इस पर अध्ययन करते समय एक प्रयोग किया गया जिसमे इंसानों के बोलते समय मुंह से निकलने वाली छोटी बूंदों पर लेजर लाइट का प्रयोग किया गया। इस बात को समझने पर जोर दिया गया है कि आखिर अस्पतालों, घरों, आयोजनों और क्रूज जैसे सीमित हवा वाले स्थानों पर संक्रमण इतनी तेजी से क्यों फैला। इस अध्ययन के दौरान एक प्रयोग किया गया, जिसमें इंसानों के बोलते समय मुंह से निकलने वाली छोटी बूंदों पर लेजर लाइट का प्रयोग किया गया। अगर बुँदे किसी भी संक्रमित व्यक्ति की हुई तो खतरा काफी बढ़ जाता है क्योकि एक बून्द किसी स्वास्थ्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकती है ।
इस अध्ययन में इस बात का अवलोकन किया गया कि लोग बोलने पर किस प्रकार सांस से निकलने वाली बूंदें पैदा करते हैं। इससे जो नतीजे सामने आए, उसमें पाया गया कि इन छोटी बूंदों में संक्रमण के फैलाव के पर्याप्त कण हो सकते हैं।