सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 से एस अज़ीज़ बाशा बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले को खारिज कर दिया, जिसमें 1967 में कहा गया था कि चूंकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर रेगुलर बेंच द्वारा निर्णय लिया जाएगा।बता दें कि 1967 में सुनवाई के दौरान यूनिवर्सिटी ने कहा था कि सर सैयद ने इस संस्थान को बनाने के लिए चंदा जुटाया था.इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान होने का दर्जा मिलना चाहिए.जिसे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि सर सैयद और उनकी कमेटी ब्रिटिश सरकार के पास गई थी. ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाया और इस यूनिवर्सिटी को मान्यता दी, इसलिए इसे न तो मुस्लिमों ने बनाया और न ही उन्होंने शुरू किया. इसलिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया जा सकता.सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 13 साल बाद 1981 में केंद्र सरकार ने AMU एक्ट के सेक्शन 2(1) बदलाव करते हुए इसे मुसलमानों का पसंदीदा संस्थान बताया और इसे अल्पसंख्यक का दर्जा दिया.साल 2006 में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना तो हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद साल 2019 में यह मामला 7 जजों की संवैधानिक बेंच को भेजा गया. जिसके बाद आज सुप्रीम कोर्ट ने 57 साल पहले सुनाया गया अपना ही फैसला पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है. कोर्ट का कहना है, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है.