फूली ,गोल और कुरकुरी पूड़ी में चने ,प्याज़ और मिर्च का चटपटा मसाला भर कर जब वो अपने हाथ इमली और पुदीने के ठन्डे पानी में डाल कर सुखी पूड़ी को पानी पूड़ी बनता था तो कैसे हमारे मुँह में भी पानी भर आता था और इंतज़ार भी नहीं होता की कब वो पानी से छलकती चटपटी और कुरकुरी पूरी को हम अपने मुँह में भर कर आखे बंद कर के उसके सारे स्वाद को अपने मन तक पंहुचा ले। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने पानी पूड़ी या गोलगप्पे का मज़ा नहीं लिया होगा। अगर आप मेरी ही तरह गोलगप्पे को याद कर रहे तो WE ARE SAME BRO।
लेकिन सोचने वाली बात यह है की कोरोना के वजह से लगे लॉक डाउन के चलते हम हमारे गोलगप्पे से कितने दूर होगए है और कैसे चल रही होगी हमारे गोलगप्पे वाले अंकल की जीवनी। कोरोना के वजह से हमने यह सीखा है और जाना भी है की साफ़ सफाई कितनी ज़रूरी है। अब बात यह है की गोलगप्पे वालो का क्या होगा? कैसे उनके गोलगप्पे बिकेंगे ?क्या उन्हें मौका मिलेगा तो हम गोलगप्पे खरीदेंगे भी या नहीं ?
ये सभी सवाल तो मेरे मन में चल रहे है क्योकि 10 रूपए में आत्मा तृप्त करने वाला गोलगप्पा पता नहीं कब अपने उसी रूप में हमारे पास आएगा । आप सभी तो जानते ही होंगे की गोलगप्पा हमारे भारत की शान है। कोई विदेशी आ जाए तो हम भारतीय उसे एक बार गोलगप्पा या पानी पूरी या फिर आप फुचका कह ले बिना खाए जाने नहीं देते। हाल ये है की हमे ही नहीं पता की कब सब वापस से ठीक होगा।
कुछ सवाल
क्या गोलगप्पा बेचने वालो के पास कोई विकल्प है ?
क्या गोलगप्पे की डिलीवरी घर तक हो सकती है ?
क्या पानी पूड़ी hygenic है ?
क्या आप बाहर खाएंगे ऐसे कोरोना के स्तिथि में ?
क्या लॉक डाउन के बाद गोलगप्पे दाम बढ़ जाएंगे ?
फ़िलहाल तो ये सवाल मेरे दिमागमे है और आपके ? कमेंट करे