रांची: झारखंड सरकार ऐसे तीन विधेयकों को दोबारा पारित कराने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना चाहती है, जिन्हें राज्यपाल ने लौटा दिया था.ये विधेयक मॉब लिंचिंग विरोधी, डोमिसाइल नीति और आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने से संबंधित हैं.ये तीनों मुद्दे राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन के चुनावी घोषणा पत्र से जुड़े हैं.वहीं, पिछले साल विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाकर डोमिसाइल नीति और आरक्षण से संबंधित विधेयक पारित किया गया था, लेकिन इन्हें राजभवन की मंजूरी के बिना लौटा दिया गया था.राजभवन के इस कदम से सरकार हैरान रह गई.मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कई बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार इन मुद्दों पर अडिग है.झारखंड के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए 1932 के खतियान (भूमि सर्वेक्षण रिकॉर्ड) के आधार पर राज्य की अधिवास नीति आवश्यक है।सरकार चाहती है कि राज्यपाल द्वारा लौटाए गए इन विधेयकों को कानूनी विशेषज्ञों की राय के मुताबिक हूबहू या आंशिक बदलाव के साथ दोबारा पारित कराया जाए।लेकिन एक बड़ी तकनीकी बाधा है.दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत प्रावधान है कि राज्यपाल बिल लौटा देते हैं.
वह उनसे अपनी आपत्ति के बिंदु नोट करते हुए पुनर्विचार करने को कहते हैं।सरकार का कहना है कि राज्यपाल ने डोमिसाइल नीति और आरक्षण संबंधी विधेयक लौटाते समय कोई संदेश (नोटिंग) नहीं दिया है.यह नोटिंग जरूरी है, क्योंकि इसके आधार पर बिल दोबारा पास किया जा सकता है.इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार की ओर से गठित समन्वय समिति के सदस्यों ने रविवार को राजभवन पहुंचकर ज्ञापन सौंपा. उसने राज्यपाल से विधेयकों को नोटिंग के साथ लौटाने का आग्रह किया है।ज्ञापन में पूर्व राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी और द्रौपदी मुर्मू द्वारा लौटाए गए कुछ बिलों पर उनकी नोटिंग का उदाहरण भी दिया गया है।
झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश ठाकुर, पूर्व मंत्री और कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बंधु तिर्की, राज्य समन्वय समिति में शामिल झामुमो के विनोद पांडे ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी बात रखने के लिए दो दिन पहले राजभवन से समय मांगा था। .लेकिन राजभवन की ओर से उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गयी.राजभवन जाने पर पता चला कि राज्यपाल रांची में नहीं हैं. इसके बाद राजभवन के गेट पर स्थित कार्यालय में समिति ने ज्ञापन प्राप्त किया.समिति के नेताओं ने कहा कि राजभवन को किसी राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहिए.हालाँकि, अगर राज्य सरकार इन विधेयकों से जुड़ी तकनीकी बाधाओं को दूर करने के बाद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लेती है, तो यह झारखंड के विधायी इतिहास में एक रिकॉर्ड भी होगा।2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से तीन बार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जा चुका है.इनमें से दो विशेष सत्र पिछले साल कुछ ही महीनों के अंतर पर बुलाए गए थे।इस तरह का विशेष सत्र बुलाने वाली यह झारखंड की पहली सरकार है.