चाईबासा में आदिवासी-हो समाज के लोगों ने NH-220 और चाईबासा बाईपास पर दिन के समय भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर पुलिस द्वारा आंसू गैस के गोले छोड़े,लाठीचार्ज किया गया. जिसपर भाजपा ने राज्य सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई है.
भाजपा सांसद चंपाई सोरेन कहते हैं ”कल देर रात, झारखंड की महागठबंधन सरकार ने चाईबासा में “नो एंट्री” की मांग लेकर आदिवासियों के आंदोलन को कुचलने की जिस प्रकार कोशिश की, उसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम होगी।आखिर उन आदिवासियों का क्या कसूर था? उस क्षेत्र में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर वे दिन में भारी वाहनों के लिए नो एंट्री की मांग कर रहे थे। क्या उनकी यह मांग गलत है? क्या इस राज्य में लोगों को लोकतांत्रिक तरीके से धरना प्रदर्शन का अधिकार नहीं है?लेकिन सरकार द्वारा, जिस प्रकार उन आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई गईं और आंसू गैस के गोले छोड़े गए, वह ना सिर्फ अमानवीय, बल्कि शर्मनाक है। क्या सरकार को ऐसा लगता है कि इन हथकंडों से वो आदिवासी समाज को डरा सकती है?…”
भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी कहते हैं ”खुद को आदिवासियों की हितैषी बताने वाली हेमंत सरकार अब उन्हीं की आवाज़ को कुचलने और दबाने के लिए बर्बरता पर उतर आई है।चाईबासा में आदिवासी-हो समाज के लोगों ने NH-220 और चाईबासा बाईपास पर दिन के समय भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाने की मांग की थी ताकि लगातार हो रही सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन समस्या का समाधान निकालने के बजाय, पुलिस प्रशासन ने आदिवासी हो समाज के भाइयों बहनों पर ही निर्ममता से लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। कई लोगों पर झूठे मुकदमे कर जेल में डाल दिया गया। यहां तक कि महिलाओं और बच्चों तक को बुरी तरह से पीटा गया…अपनी जायज मांगों के लिए ने स्थानीय विधायक और परिवहन मंत्री दीपक बिरुवा जी के आवास पर जाने की कोशिश की, तो उन्हें रोकने के लिए प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी।मुख्यमंत्री जी, ग्रामीण पहले से ही दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा रहे हैं, लेकिन आपको लगता है कि आयरन माइनिंग के कारोबार से मिलने वाला लाभ इंसानी जान से ज़्यादा मूल्यवान है। जनता के आंसू पोंछने के बजाय आप उन पर आंसू गैस बरसा रहे हैं; गरीबों के सहारा बनने के बजाय आप उन पर लाठियाँ चलवा रहे हैं।याद रखिए, जिस आदिवासी-हो समाज ने आपको सत्ता की चाभी सौंपी थी, वही समाज आपको कोल्हान से पूरी तरह मिटा भी सकता है। बेहतर होगा कि सत्ता का अहंकार छोड़कर ग्रामीणों से संवाद करें और उनकी समस्याओं का संवेदनशील समाधान निकालें।”


